Tuesday, July 21, 2009

ज़िन्दगी ऐसी ही होती है..


कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है मै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी है ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है मोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं है जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है मै जब भी तेज़ चलता हू नज़ारे छूट जाते है कोई जब रूप गढ़ता हू तो सांचे टूट जाते है मै रोता हू तो आकर लोग कन्धा थपथपाते है मै हँसता हू तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते है समंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकता ये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकता मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता भ्रमर कोई कुम्दनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोह्बत्त का मै किस्से को हक्कीकत में बदल बैठा तो हंगामा बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेडे सह नहीं पाया हवाओं के इशारों पर मगर मै बह नहीं पाया अधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का किस्सा कभी तू सुन नहीं पाई कभी मै कह नहीं पाया

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