Friday, July 24, 2009

डर


मरने का डर है हर उस इंसान को ,जो इस संसार मैं जीना चाहता है।

फ़िर जाने का डर है हर उस इंसान को , जो इस संसार मैं उठाना चाहता है।

मछली को डर है कि उसे ,मछुआरा पानी से निकालने वाला है।

मछुआरे को डर है कि उसकी ,नोव कोई पलटाने वाला है।

अग्नि को डर है कि ,पानी उसेह बुझाने वाला है।

पानी को डर है कि ,सूर्य उसेह उडाने वाला है।

और डर को डर है कि , सहस उसेह मिटाने वाला है।

सहस निडर है क्योकि वह ,मुश्किलों का सामना करने वाला है।


1 comment:

  1. मुझे डर है कि मैं इस कविता में न खो जाऊँ
    good one

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